Zubair Ali Tabish shayari - प्यार की उम्मीद पर गज़ब शायरी !

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Credit: Zubair Ali Tabish

वो पास क्या ज़रा सा मुस्कुरा के बैठ गया मैं इस मज़ाक़ को दिल से लगा के बैठ गया !

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जब उस की बज़्म में दार-ओ-रसन की बात चली मैं झट से उठ गया और आगे आ के बैठ गया !

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दरख़्त काट के जब थक गया लकड़-हारा तो इक दरख़्त के साए में जा के बैठ गया !

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तुम्हारे दर से मैं कब उठना चाहता था मगर ये मेरा दिल है कि मुझ को उठा के बैठ गया !

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जो मेरे वास्ते कुर्सी लगाया करता था वो मेरी कुर्सी से कुर्सी लगा के बैठ गया !

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फिर उस के बा'द कई लोग उठ के जाने लगे मैं उठ के जाने का नुस्ख़ा बता के बैठ गया !

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