Shakeel Azmi: इश्क़ में अकेले रह जाने पर क्या ख़ूब लिखा है !..

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Credit: Shakeel Azmi

अकेले रहने की ख़ुद ही सज़ा क़ुबूल की है ये हम ने इश्क़ किया है या कोई भूल की है !

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ख़याल आया है अब रास्ता बदल लेंगे अभी तलक तो बहुत ज़िंदगी फ़ुज़ूल की है !

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ख़ुदा करे कि ये पौधा ज़मीं का हो जाए कि आरज़ू मेरे आँगन को एक फूल की है !

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न जाने कौन सा लम्हा मेरे क़रार का है न जाने कौन सी साअ'त तेरे हुसूल की है !

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न जाने कौन सा चेहरा मेरी किताब का है न जाने कौन सी सूरत तेरे नुज़ूल की है !

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जिन्हें ख़याल हो आँखों का लौट जाएँ वो अब इस के बा'द हुकूमत सफ़र में धूल की है !

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ये शोहरतें हमें यूँही नहीं मिली हैं 'शकील' ग़ज़ल ने हम से भी बहुत वसूल की है !

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