Self love poetry: चोट खाकर भी कैसे मुस्कुराता हूँ मैं...

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By Prakash

चराग जब तक जलेगा जलने दो दिन अब ढल रहा है ढलने दो !

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पत्थरों से बार बार टकराऊँगा मैं चोट खाकर ही मुझे संभलने दो !

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तेरा गम मना लूँ अगर इजाज़त हो मुझको मुझसे दूर निकलने दो !

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तेरे दिल से निकल कर मैं ज़िंदा नहीं ये दिल दहला है और दहलने दो !

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चोट खाकर भी कैसे मुस्कुराता हूँ मैं देख कर आँखें सभी को मलने दो !

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तन्हाई, रुसवाई, दर्द और तकलीफ़ें इन्हीं खविलौनों से अब बहलने दो !

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