Women Day : मैं स्त्री जो ठहरी! By Ritika

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By Ritika

मैं स्त्री जो ठहरी!.. मुझे किसी बात का बुरा नही लगता। 

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ना अपने परवरिश पर, ना अपने ख्वाहिशों को बुझने पर,

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ना मेरे त्वचा के रंगों पर, ना असंवेदनशील समाज पर,

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मैं स्त्री जो ठहरी!... जूझती रहती हूं... कभी हंसकर..

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कभी खामोश रहकर स्वप्नों का गला घोंटती रहती हूं.. मगर डरती नही हूँ समाज से,

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हारती नही हूँ खुद से.. भले ही लोगो का संदेह खत्म न हो,

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मगर चलती रहती हूं मैं, कुदरत के दिये अद्दुत गुणों के सहारे, क्योंकि. मैं स्त्री जो ठहरी!!

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