Urdu shayri - ख़ूबसूरत था सफ़र by M M Malik डायरी की शायरी

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चला था साथ वो मेरे ख़ूबसूरत था सफ़र अंदाज़ा नहीं था की छोड़ जाएगा इस क़दर।

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इस मोड़ पर अब पड़ गया हूं अकेला, सोचता हूं कुछ दिन हो यहीँ बसर,

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अब बैठा हूँ अधूरा मंजिल की ज़ानिब, बस टिकाये हुए हूँ मंजिल पर नज़र।

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गर लौट आए तू अभी भी मुनाफ़े में रहेगा, कहीं दूसरा न मिल जाये इस सफ़र पर हमसफ़र।

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नहीं तू आएगा तू तो भी कोई बात नहीं, दिल को शायद आज नहीं कल तो होगी ख़बर।

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अब क्या मलाल करे ये दिल जाने का तेरे, जब अकेले ही करना है पूरा ये सफ़र।

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