Sad ghazal - क्यों ये जहान छोड़ बैठा हूँ मैं 

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By Khaab Etavi

क्यों ये जहान छोड़ बैठा हूँ मैं अपना मकान छोड़ बैठा हूँ मैं !

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मेरा ख़ुदा रूठ गया मुझसे दोपहर की अज़ान छोड़ बैठा हूँ मैं !

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बड़े मौके के बाज़ार में थी मुनाफ़े की दुकान छोड़ बैठा हूँ मैं !

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हर बिस्तर यहाँ सिर्फ़ फ़रेब है क्यों अपनी थकान छोड़ बैठा हूँ मैं !

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वो मसीहा है गूँगे बहरों का जिसे अपनी जुबान छोड़ बैठा हूँ मैं !

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हूँ तीर लिए बिना मैं निकलता नहीं घर पे मगर कमान छोड़ बैठा हूँ मैं !

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हवाओं में घुल जाने चाहिए थे वो लोग शरीर पे जिन्हें निशान छोड़ बैठा हूँ मैं !

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