Rahat Indori की ऐटिटूड पर बेहतरीन ग़ज़ल 

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Credit: Rahat Indori

राहत इंदौरी साहब ने 2020 में दुनिया को अलविदा कह दिया ! शायरी और ग़ज़ल के बादशाह की एक और ग़ज़ल पेश है

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न हमसफ़र न किसी हमनशीं से निकलेगा हमारे पांव का कांटा हमीं से निकलेगा !

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मैं जानता था कि ज़हरीला सांप बन बन कर तिरा ख़ुलूस मिरी आस्तीं से निकलेगा !

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इसी गली में वो भूखा फ़क़ीर रहता था तलाश कीजे ख़ज़ाना यहीं से निकलेगा !

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बुज़ुर्ग कहते थे इक वक़्त आएगा जिस दिन जहां पे डूबेगा सूरज वहीं से निकलेगा !

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गुज़िश्ता साल के ज़ख़्मों हरे-भरे रहना जुलूस अब के बरस भी यहीं से निकलेगा !

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  अब एक Like तो बनता है, मुनवर राणा की ज़िंदगी पर बेहतरी शायरी 👇

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