Purani yaadein shayari by  - Tabbassum  Guest writer of डायरी की शायरी

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तो शुरुआत कुछ यूं करती हूं एक दिन अचानक कुछ यूं हुआ की बरसों पुरानी एक किताब खुली और इत्तेफाक की बात तो ये है...

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कि वो किताब मेरे दिल के बहुत करीब निकली जिसमें सूखी हुई कुछ गुलाब की पंखुड़ियां और किसी की खिलखिलाती हुई मुस्कुराहट मिली।

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और अचानक मेरे चेहरे पर फिर से वही पुरानी वाली मुस्कुराहट ले आई जो बरसों पहले मैंने किसी बक्से में बंद करके दफ़न कर दिया था

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वो बक्सा आज अचानक फिर से खुल गया और मुझे उस पुराने वक्त में ले गया जो वक्त मेरे लिए बहुत खास था क्योंकि उस वक्त एक बहुत खूबसूरत शख्स मेरे पास था

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उसकी एक आवाज पर मैं सब कुछ वार जाती थी उसकी एक मुस्कुराहट पर मैं सब कुछ हार जाती थी

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और उसकी आंखें कसम से किसी दरिया से कम नहीं थी एक बार देखा मतलब समझो डूब ही गए वो पल मेरे लिए खुदा के किसी इनायत से कम नहीं था

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आज भी उन लम्हों को याद करती हूं तो दिल से सिर्फ एक ही बात आती है कि यार वो लम्हा सच में बहुत खूबसूरत था

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माना कि आज वह लम्हा मेरे पास नहीं है वो शख्स मेरे साथ नहीं है मगर मुझे कोई शिकायत नहीं है

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मैं उन लम्हों को कुछ वक्त करीब से महसूस कर पाई हूं मेरे लिए तो इतना ही काफी है...

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हां माना कि उन लम्हों को खोने के बाद मैंने खुद को ही खो दिया था मगर उन कुछ पलों के लम्हों में मैंने बहुत कुछ जिया था

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और मेरे लिए बस इतना ही काफी था हां मेरे लिए तो बस इतना ही काफी था।

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