Life poetry - ताउम्र ये आँखे भरी रही ... By Dastan-E-aashiqui डायरी की शायरी

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सितम रहा सितम के ग़म रहे ग़मो की जल्वागरी रही ख़िरद से दुश्मनी रही मेरी और ख़ुशी से पर्दा दारी रही !

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हमारी सोहबत के रंग तमाम तुम्हारे फूल पे अब भी हैं हम नहीं रहे तो क्या हुआ बगिया तो तुम्हारी हरी रही !

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किसी के बाद हमारी गुज़री ज़िन्दगानी कुछ इस तरह ताउम्र ये दिल दरख़ेज़ रहा ताउम्र ये आँखे भरी रही !

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अरसे पहले इस गुलशन में सब रंगत बहाल थी दोस्त अब न फूल रहे न ख़ुशबू, न इश्क़ रहा न वो परी रही !

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एक ग़ज़ल तुझे सुनाने को मैंने बड़ी बहर में लिखी थी तेरी फुर्सत के इंतज़ार में वो ग़ज़ल भी ज्यों त्यों धरी रही !

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