Jaun Elia sad poetry Credit: Jaun Elia Presentation  डायरी की शायरी

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नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम ~Jaun Elia

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ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम ~Jaun Elia

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ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं वफ़ा-दारी का दावा क्यूँ करें हम  ~Jaun Elia

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वफ़ा, इख़्लास, क़ुर्बानी, मोहब्बत अब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूँ करें हम ~Jaun Elia

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हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुम तुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम  ~Jaun Elia

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उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ें फ़क़त कमरों में टहला क्यों करें हम  ~Jaun Elia

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जो इक नस्ल फ़रोमाया को पहुँचे वो सरमाया इकट्ठा क्यों करें हम ~Jaun Elia 

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नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी तो फिर दुनिया की परवाह क्यूँ करें हम  ~Jaun Elia

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बरहना हैं सर-ए-बाज़ार तो क्या भला अंधों से पर्दा क्यों करें हम  ~Jaun Elia

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हैं बाशिंदे उसी बस्ती के हम भी सो ख़ुद पर भी भरोसा क्यों करें हम  ~Jaun Elia

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चबा लें क्यों न ख़ुद ही अपना ढाँचा तुम्हें रातिब मुहय्या क्यों करें हम  ~Jaun Elia

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पड़ी हैं दो इंसानों की लाशें ज़मीं का बोझ हल्का क्यों करें हम ~Jaun Elia 

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