Hindi poetry on life by Sakshi Guest writer of डायरी की शायरी 

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टूट चुकी हूँ इस कदर बस अब बिखरना बाकि है ,  बिखरे हुए अंश को समेटना बाकी है...

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लड़खड़ा रहे है पैर लड़खड़ा रही ह जुबान,  लेकिन उनको अभी सम्भालना बाकी है....

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चंद सांसे जो बची है उन्हें जीना बाकि है, सांसो ने भी साथ छोड़ दिया बस अब मरना बाकि है...

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तड़प रही हूँ मैं तड़प रहा है मेरा रूह का एक एक कतरा,  फिर भी और कितना सहना बाकी है..

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ऐ जिंदगी थक चुकी हूँ तुझसे करदे मुझे खुद से जुदा,  तेरा अब और क्या देखना बाकी है....

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