Hindi poetry - कभी-कभी मुझको एक बात सता जाती है BY Priyanka Singh

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BY: Priyanka Singh

कभी-कभी मुझको एक बात सता जाती है नदी है फिर भी क्या जिंदा उसकी प्यास रह जाती है ! 

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क्या  उसकी भी कोई मजबूरी रहती होगी तभी मीठी सी नदी खारे समंदर में मिलती होगी !

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वो खुद उतरी थी समंदर और उसकी गहराईयों में या समंदर ने बाहें फैला छुपाया नदी को परछाईयों में !

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क्या एक बड़ी सी लहर ने नदी को किनारे धकेला था या  भर लिया खुद को और खुद को पाया अकेला था !

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नदी को भी समंदर में  समाना अच्छा लगता है या बादल ओढ़ धरा की गोद में बहना अच्छा लगता है !

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क्या  तुम्हें नहीं  लगता तुम अपना अस्तित्व खोती हो मीठी  से  खारी हो जाने के बाद क्या तुम भी रोती हो !

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हिमालय  से  बह पहाड़ों  को चीर  निकल जाती हो फिर समंदर के आगे बताओं क्यों फीकी पड़ जाती हो !

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फिर   एक   दिन नदी  ने मुझको  एक बात समझा दी ज़ज्बात है मेरे और मुकद्दर  समंदर है  बात बतला दी !

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वफा  मैं  कर  देती  हूं और बेवफाई समन्दर दे देता है मैं उसमें समाती हूं वो खुद में कई नदियां समा लेता है !

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समन्दर  को  बेशक  हजारों नदियां पसंद हो जाती है मेरा तो बस एक समंदर, नदी तो सागर को ही पाती है !

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