Ghazal  - मैं सोमवार के व्रत रखने लगा हूँ !

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Credit: Khaab Etavi

नीलकण्ठ के वश में रहने लगा हूँ मैं सोमवार के व्रत रखने लगा हूँ !

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ये सच है कि तुम मालिक हो मेरे ख़ुदपे कुछ हक़ मैं रखने लगा हूँ !

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क्या कुछ वादे ना किए थे तुमने देखो क्या क्या मैं बकने लगा हूँ !

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दिल का हमेशा से साफ़ था मैं अब तो आईने में भी दिखने लगा हूँ !

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जिस बाज़ार से उठाया था तुमको उस बाज़ार में मैं भी बिकने लगा हूँ !

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आसमां पे खड़ा कर दिया था मुझको मैं जमीन की तरफ़ झुकने लगा हूँ 

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