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Credit: Respected poets
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे - वसीम बरेलवी
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नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है उनकी आग़ोश में सर हो ये ज़रूरी तो नहीं - ख़ामोश ग़ाज़ीपुरी
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बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता - निदा फ़ाज़ली
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अब के सफ़र में दर्द के पहलू अजीब हैं जो लोग हम-ख़याल न थे हम-सफ़र हुए ! - खलील तनवीर
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दर्द जितना भी उसे बेदर्द दुनिया से मिला शायरी में ढल गया कुछ आँसुओं में बह गया - हबीब जालिब
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मुझमे कितने राज़ हैं, बतलाऊं क्या बन्द एक मुद्दत से हूं, खुल जाऊं क्या ! -राहत इंदौरी
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दर्द ऐसा है कि जी चाहे है ज़िंदा रहिए ज़िंदगी ऐसी कि मर जाने को जी चाहे है ! - कलीम आजिज़
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