Munawwar Rana shayari: ज़िंदगी की हकीकत बयाँ करने वाली शायरी!

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Credit: Munawwar Rana

हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं जैसे बच्चे भरे बाज़ार में खो जाते हैं !

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मुस्तकिल जूझना यादों से बहुत मुश्किल है रफ्ता-रफ्ता सभी घरबार में खो जाते हैं !

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मेरी मुट्ठी से ये बालू सरक जाने को कहती है कि अब ये ज़िंदगी मुझसे थक जाने को कहती है !

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जिसे हम ओढ़कर निकले थे आग़ाज़े जवानी में वो चादर ज़िंदगी की अब मसक जाने को कहती है !

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मंज़िल क़रीब आते ही एक पांव कट गया चौड़ी हुई सड़क तो मेरा गांव कट गया !

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कहानी ज़िंदगी की क्या सुनाएं अहले महफ़िल को शकर घुलती नहीं और खीर पक जाने को कहती है !

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बुलंदियो का सफ़र भी अजीब होता है पतंग देखिए कैसे हवा में जाती है !

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ग़ज़ल हर अहद में हमसे सलीका पूछने आई बरेली में कहां मिलता है सुरमा पूछने आई !

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मैं जब दुनिया में था तो हाल तक मेरा नहीं पूछा मैं जब चलने लगा तो सारी दुनिया पूछने आयी !

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बोझ उठाना शौक़ कहाँ है मजबूरी का सौदा है रहते रहते स्टेशन पर लोग क़ुली हो जाते हैं !

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गर कभी रोना ही पड़ जाए तो इतना रोना आ कर बरसात तेरे सामने तौबा कर ले !

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कुछ बिखरी हुई यादों के क़िस्से भी बहुत थे कुछ उस ने भी बालों को खुला छोड़ दिया था !

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किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में मां आई !

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