राहत इंदौरी  के कुछ खास शेर Credit : Rahat Indori

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रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है

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~Rahat Indori

एक दीवाना मुसाफ़िर है मिरी आँखों में वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है चल पड़ता है

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~Rahat Indori

अपनी ताबीर के चक्कर में मिरा जागता ख़्वाब, रोज़ सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है

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~Rahat Indori

रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं, रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है

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~Rahat Indori

उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है

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~Rahat Indori

तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो

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~ Rahat Indori

फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो इश्क़ खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो

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~Rahat Indori

बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं

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~Rahat Indori

किसने दस्तक दी, दिल पर ,  ये कौन है, आप तो अन्दर हैं, बाहर कौन है

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~Rahat Indori

कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे, जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे

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वो मुझे छोड़ गया ये कमाल है उसका , इरादा मैंने किया था छोड़ दूंगा उसे ।

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~Rahat Indori

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